Monday, October 14, 2019

दो कमरे में लगती हैं पांच कक्षाएं


( रीवा से पुष्पेन्द्र सिंह की रिपोर्ट)



शासकीय प्राथमिक शाला सोहावल खुर्द, ग्राम करौंदहाई (पंचायत सोहावल खुर्द) में विद्द्यालय से जानकारी एकत्र करते हुए, जानकारी देते हुए हेडमास्टर श्री चंद्रराज जी ने बताया कि उनके विद्द्यालय में कुल 73 (29 बालक, 44 बालिका दर्ज हैं। जिसमे से 50 से 55 बच्चों की उपस्थित प्रतिदिन रहती है। जो बच्चे स्कूल नहीं आते हैं, उनके अभिभावकों से मुलाकात करके बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करतें हैं। हेडमास्टर साहब के द्वारा बताया कि विद्द्यालय में बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त मात्रा में क्लास रूम नहीं है, जिसकी वजह से 1 से 5वीं तक के सभी बच्चों को 2 रूम में एक साथ ही सम्मिलत होकर बैठना पड़ता है, इसके वजह से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। विद्द्यालय में अभी किचन शेड नहीं बना हुआ है, जिसकी वजह से बच्चों को बनाया जाने वाला मध्यान भोजन स्कूल के पीछे खुले आसमान के नीचे बनाया जाता है। बारिश के दिनों मध्यान भोजन प्रभावित होता है, और बच्चे इससे वंचित रह जाते हैं। विद्द्यालय में वर्ष 2015 में शौचालय भवन का निर्माण करवाया गया था, कुछ दिनों तक उपयोग होने के बाद शौचालय भवन अभी वर्तमान में जर्जर स्थिति में है, वह उपयोग लायक नहीं है

विद्द्यालय में बच्चों को पानी पीने के लिए एक हैण्डपम्प लगा हुआ है। अभी वर्तमान में विद्द्यालय में 02 कमरे बने है, बारिश के दिनों में दोनों कमरों की छत लगातार टपकती रहती है, जिसके कारण से बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। विद्द्यालय में मध्यान भोजन को लेकर उनके (हेडमास्टर) द्वारा बताया गया कि विद्द्यालय में भोजन तो नियमित रूप से बनता है, लेकिन मीनू के आधार पर नहीं बनता है, ज्यादातर चावल, दाल और सब्जी ही बनता है।

विद्दयालय की टपकती छत को सही करवाने (मरम्मत करवाने), विद्द्यालय में अतिरिक्त भवन बनवाए जाने,  किचन शेड बनवाये जाने, शौचालय भवन कि मरम्मत करवाये जाने, बाउंड्रीवाल बनवाये जाने, खेल का मैदान बनाए जाने को लेकर हेडमास्टर जी के द्वारा शाला प्रबंधन समिति के बैठक के दौरान इन मुद्दों को बैठक में उठाकर उनके द्वारा प्रस्ताव बनवाकर बीआरसी महोदय जवा और जिला शिक्षा अधिकारी रीवा को वर्ष 2017 और 2018 में लगातार दिया गया था, लेकिन विभाग की उदाशीनता के कारण आज वर्तमान समय तक कोई भी सुनवाई नही हुई, और बच्चों के अधिकारों का हनन लगातार जारी है।

Saturday, October 12, 2019

एक स्कूल में मजेदार सीखना सिखाना


https://youtu.be/72DrJvvFyQQ

मुझे 4माह से पेंशन नही मिली


(आनंदी लाल)
11अक्टूबर,019 को खाद्य असुरक्षा और कुपोषण से मुक्ति की जन यात्रा की गाड़ी यात्रा टीम के साथियों को लेकर रोहनियाँ गांव की ओर जा रही थी कि गांवों  पहुँचने से 2 किलो मीटर पहले पैदल आ रहे बुजुर्ग व्यक्ति के ऊपर नजर यात्रा में शामिल साथियों की गई। ड्राइवर से गाड़ी खड़ी करने को कहा। साथी  बुजुर्ग के पास पहुँचकर पूछा कि कहाँ जा रहे है बब्बा,उसने बताया कि बेटा मझगवां।कोई काम से ? उसने जवाव दिया  हाँ।क्या काम है उसने कहा कि मुझे 4माह से पेंशन नही मिली ,पटवारी व तसिलदार से मिलना है। उससे नाम पूंछने पर अपना नाम लोकनाथ सिंह गोंड़ उम्र-85 वर्ष बताते हुए अपना हांथ थैले में डालकर कुछ कागजात निकले और बोले कि दादू देखो ये कौन सा कागज है।उसने जो कागज निकाला था वह पंजाब नेशनल बैंक की पास बुक थी उसको बताया कि बब्बा पास बुक है।उसने कहा कि हाँ मेरी पत्नी चुनियां की है इसका खाता झोंवटा में हैं जिसका खाता नंबर 2675001700027540 हैं जिसमे 5/01/018 को 900 रुपये निकासी दर्ज थी और खाते में 110 रुपये चढ़े थे उन्होंने बताया कि 4 माह से मेरी पत्नी चुनियां को भी पेंशन नही मिली, मेरे गाँव जा रहे हैं उसकी अर्जी बना लेना उन्होंने कहा कि जिस बैंक में खाता खुला है वो हमारे गांव से 50 किलोमीटर दूर हैं जितनी पेंशन नही मिलती उतना किराया लग जाता है इस लिये भइया मझगवां के ही बैंक में खाता खोलवा दो कहते हुए अपने कागजात थैले में डालते हुए कहा कि मुझे पैदल चलकर कर जाना है धूप हो रही है कहते हुए कंधे में थैला टांगा    और एक हांथ मे सुतली से बंधी पानी की बॉटल लिया और दूसरे हांथ मे  डंडा सहारा लेकर खड़ा हुआ और चल दिये मझगवां की और ! साथियों की निगाहें  तब तक टिकी रही जब तक  व आँखों से ओझल नही हो गया।

रोहनियां गांव की कहानी



( सतना से आनंदीलाल की रिपोर्ट)
 ग्राम - पंचायत देवलहा का रोहनियां गांव भौटी नुमा ऊँचाई पर बसा आदिवासी बाहुमुल्य गांव है ,इस गांव में 87 परिवार हैं जिनकी जनसंख्या 404 है इन 87 परिवारों में 8 परिवार ब्राह्मण जाति के तिवारी व गर्ग समुदाय के हैं शेष 79 परिवार  आदिवादसी गोंड़ समुदाय के है ।
इस गांव में आंगनवाड़ी केंद्र और प्राथमिक कक्षा तक विद्यालय है । इसके बाद बच्चे कक्षा 6 वी से 10 वीं तक पढ़ने के लिए गांव से 5 किलो मीटर दूर पटना कला जाते हैं ।

आंगनवाडी केंद्र-
इस गांव में संचालित आंगनवाडी केंद्र में कार्यकर्ता सावत्री सिंह गोंड़ व सहायिका कृष्णा गर्ग है जिनके साथ मिलकर केंद्र के बेहतर क्रियान्वयन को लेकर यात्रा टीम के साथियों द्वारा अवलोकन कर चर्चा की गई तब उन्होंने बताया कि आंगनवाड़ी केंद्र का अपना भवन है किंतु इस भवन की छत से पानी टपकता है ,पेयजल सुविधा नही है ,बच्चों को पीने के लिए पानी स्टील की टंकी में भर कर रखा जाता है , केंद्र में शौचालय तो बना है किंतु उसका टैंक भटा हुआ है , बच्चों के बैठने के लिए एक दरी है , बच्चों कर खेलने के खिलौने हैं ,खेलने के लिए पर्याप्त स्थान है ,खाना बनाने के पर्याप्त बर्तन हैं ,हाँथ धोने के लिए साबुन सहित कंघा -सीस व तेल की व्यवस्था है THR गर्भवती,धात्री ,किशोरी व बच्चों को हर माह उपलब्ध कराया जाता है तथा 11 से 14 वर्ष की शालात्यागी 11 किशोरी बालिकाओं को भी THR दिया जाता है । केंद्र की वजन मशीन सही है व सभी तरह के रजिस्टरो को भी कंप्लीट किया जाता है । इस केंद्र में 0 से 6 माह के M-1,F-4 व 6 माह से 3 वर्ष केM-11,F-6 व 3 से 6 वर्ष के बच्चे M-12,F-12 बच्चों सहित 0 से 1 साल के कुल M-24,F-22 सहित 46 बच्चे दर्ज हैं ,जिसमे मध्यम कुपोषित बच्चे M-5 ,F-6 कुल 11 हैं तथा अति कम वजन के M-2,F-3 कुल 5 बच्चे हैं जुलाई से सितंबर के बीच रानी सिंह गोंड़ के बालक की मृत्यु हुई है । सात गर्भवती माताओँ के PMMVY फार्म भरवाए गए थे जिसमें श्रीमती- पुनीत सिंह, रानी सिंह ,सीमा सिंह ,केशकली सिंह सहित इन 4 महिलाओं को 5-5 हजार रुपये सहित कुल  20 हजार की समस्त राशि प्राप्त हो चुकी है । केंद्र में 9 अक्टूबर से बच्चों को साझा चूल्हा के तहत खाना समूह द्वारा नही दिया गया था,खाना न मिलने की वजह पूछने पर सावत्री ने बताया की दसहरा अवकाश होने पर विद्यालय बंद था फिर भी मैं केन्द्र का THR रसोईया राजेश बाई सिंह को देकर हलुआ ,खिचड़ी बनवाकर बच्चों को खिलाती थी ,इसी बीच रसोईया राजेश बाई बच्चों को सब्जी -रोटी बनाकर लेकर आई पूंछने पर कि ये राशन सामग्री कहां से मिली है तो उसने बताया कि आज मैं आपने घर से बना के लाई हूं । बच्चों को थर्ड मील का खाना भी दोपहर का बचा हुआ दिया जाता है ।

प्राथमिक विद्यालय-
गांव में साशकीय प्राथमिक शाला तक विद्यालय है जिसमें 1 शिक्षक राजा सिंह पदस्थ हैं इनसे चर्चा के मुताबित जो स्तिथि बयां किया उसमे उन्होंने बताया कि विद्यालय में चार कमरे हैं , इनमें से 2 कमरों की छत से पानी टपकता है छत के नीचे दिवाल में दरार पड़ गई है , बाउंड्री बाल नही है , एक हैण्ड पम्प है जिससे बच्चे पानी पीते हैं । बच्चों ने विद्यालय भवन बनवाये जाने का आवेदन श्री मान कलेक्टर के नाम से यात्रा के साथियों को दिया ।  विद्यालय में दर्ज बच्चों की संख्या M-19 ,F-23 सहित को 42 हैं । गांव से  5 वीं पास कर पटना कला बच्चे पढ़ने जाते हैं उनमें से कक्षा 6 वी में 5 ,7वी में 6 ,9वी में 5 , और 9वी में 2 सहित 18 बच्चे पढ़ने जाते है । गांव से 10 वीं में पढ़ने वाला कोई बच्चा नही हैं ।

गांव में पेयजल स्रोत--
गांव में 6 हैंडपम्प व 1 कुआं हैं वर्तमान समय मे 4 हैंडपम्प खराब हैं 2 सही हालत में है जिनका गांव के लोग पेयजल के रूप में इस्तमाल करते है किंतु गांव के ज्यादातर परिवार कुएँ के पानी को पीने व निस्तार के रूप में लाते है क्योंकि कुए का पानी मीठा व भोजन के पकाने के लिए अच्छा है ।
गांव में शिक्षा का स्तर व शासकीय नौकरियों- रोहनियां गांव के इन 87 परिवारों में से धूपलाल सिंह,सूरज,प्रेम ,राजू ,गीता कक्षा 12वीं पास हैं  इसके ऊपर किसी की पढ़ाई नही हुई ,वर्तमान में जो बहुएं अपने ससुराल आई हैं उनमें अधिकांशतः 10वी -11वी  पास हैं । वर्तमान में शासकीय नौकरी में जौहर सिंह mp पुलिस में है ,चंद्रशेखर सिंह mp पुलिस में थे जिनकी एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई । सावत्री सिंह आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व कृष्णा गर्ग सहायिका के पद में हैं ।

आवास-
गांव में अभी तक 7 परिवारों को शासकीय आवास प्राप्त हुए हैं जिसमे जानकी सिंह , बब्बू सिंह ,वंसरूप सिंह को इंद्रा आवास और बहादुर सिंह ,धूपलाल सिंह ,रामप्रसाद सिंह को cm आवास व लोकनाथ सिंह को pm आवास प्राप्त हुआ है । इनमे से इंद्रा 3 इंद्रा आवास छोड़कर सभी आवास अधूरे पड़े है ।
गांव के लोगों को वनाधिकार भूमि के मिले अधिकार पत्र व अधिकार पत्र पाने से वंचित परिवार--  गांव में जो लोग वनाधिकार भूमि में कब्जा कर वर्षों से खेती कर अपनी आजीविका चला रहे थे ऐसे 18 परिवारों को वन अधिकार पत्र प्राप्त हुए है उनमें से दसमत सिंह/पिता-भगवान दीन को 5 एकड़ ,तीरन सिंह /पिता -वैजनाथ सिंह , बलराम सिंह /पिता-भगवान दीन साढ़े 4 एकड़, अच्छेलाल /पिता- रामनारायण 4 एकड़ ,जानकी सिंह/पिता- दुर्गेश सिंह 5 एकड़ ,दादू लाल सिंह/पिता- शिवपर्शन 5 एकड़ , वहादुर/पिता -छोटे लाल 5 एकड़ ,बाबूसिंह /पिता- ब्रजलाल सिंह 5 एकड़ , हेमराज /पिता- सुमेर सिंह 5 एकड़ ,रामप्रताप /पिता-मदन सिंह 5 एकड़ ,विजय सिंह /पिता-दुर्गेश सिंह साढ़े 4 एकड़ , गुलाब सिंह /पिता- दुर्गेश सिंह 5 एकड़ सहित कुल 13 परिवारों को 63 एकड़ भूमि के अधिकार पत्र प्राप्त हुए हैं । वर्तमान समय मे वनाधिकार पत्र पाने से जो वंचित परिवार हैं उनमें से राजवन सिंह पिता -लालवन सिंह 4.99 एकड़ ,पन्ने लाल पिता- छोटेलाल सिंह 5 एकड़ ,फूलसिंह पिता - करण सिंह 5 एकड़ , बाबू लाल पिता - छोटे लाल - 5 एकड़ , फूल सिंह पिता - लोकनाथ 3 एकड़ सहित कुल 5  परिवार को 23 एकड़ भूमि के अधिकार पत्र नही प्राप्त हुए ।
   जब यात्रा  टीम के साथी घर - घर जाकर लोगों से उनकी समस्याएं पूँछकर रूबरू हो रहे थे उसी बीच गांव के 105 वर्षीय बुजुर्ग श्री राम भगत सिंह से हुई आनंद की मुलाखात-- श्री रामभगत सिंह गांव के सबसे वयोवृद्ध व्यक्ति हैं उन्होंने अपने जीवन के 105 साल का सफर पूरा कर लिए है यह जरूर है कि उनकी दोनों आंखों ने दुनिया को देखने का साथ छोड़ दिया हो किन्तु उनके चेहरे की चमक और दांतों की मजबूती आज भी बरकरार है ,दांतो के एक भी न उखडने का राज उन्होंने बताया कि मैंने अपने जीवन मे कभी भी कोई अमल  तम्बाखू ,सुपाड़ी का सेवन नही किया अपने जीवन का अनुभव बताते हुए कहा कि पहले का समय बहुत अच्छा था अब समय बिल्कुल बदल गया है । उन्होंने बताया कि हमारा पुस्तैनी गांव पटना कला गांव है । मेरे पिता देवीदीन जी की पटना हल्का में 4 एकड़ कृषि भूमि थी साथ ही वो   खाट माचा के पेरुवा ,हल बनाने का कार्य करते थे  घर ख़र्च ठीक से चलता था  कि एक दिन घर का सारा सामान जल गया घर में कुछ नही बचा यदि बची तो सिर्फ और सिर्फ 4एकड़ जमीन।ऐसी स्थिति में मेरे पिता रोहनियां गांव चले आये उस समय मेरी उम्र लगभग 14 या 15 वर्ष की  रही होगी। जब हम यहां आये थे तब उस समय इस गांव में 6 घर मात्र थे जिसमें 1,पूरन सिंहगोड 2,बोधन  गोड 3 धौकल गोड 4 बलि गोड 5 हीरालाल गोड 6 काशी प्रसाद तिवारी।मेरे पिताजी हल आदि बनाने का कार्य  यहां भी आकर करने लगे ।मेरी शादी भी यहीं से सन 1957 में
ग्राम त्तागी निवासी चुनियां संग हुई थी।मेरे 5 लड़के व 4 लडकिया हुई।मेरी एक लड़की रोशन की मृत्यु हो चुकी है। रोहनियाँ गांव में  1,30 एकड़ भूमि का पट्टा है। मुझे वर्ष 1979 में 4 एकड़ भूमि बंटन में मिली थी जो आज तक खसरे में दर्ज नही हैं इसके लिए मैं मझगवां तहसील में जा कर पटवारी व तहसीलदार से अरजी लगाई किन्तु अभी तक काम नहीं हुआ मुझे अब आँखों से दिखाई नहीं देता और मेरा शरीर भी चल फिर पाने में साथ नही दे रहा है।अब मैं एक जगह बैठा रहता हूं।मुझे व मेरी पत्नी को शासन द्वारा बृद्ध पेंशन मिलती है उससे नून तेल का थोड़ा बहुत खर्च चल जाता है। जून,019 के बाद से अभी पेंशन लेने नही जा पाया हूँ। उन्होंने बताया कि मेरे पुत्र राजकुमार के तीन बच्चों जिसमे कु०   अंजना,अशोक,लाल भइया का नाम खाद्यान पात्रता पर्ची में न जुड़ा होने से हर माह 15 किलो राशन से वंचित होना पड़ता है।

गांव में कृषि भूमि-

 गांव में सभी परिवारों के पास 1 एकड़ से लेकर 2 एकड़ तक कृषि भूमि है जिससे लोगो के पास साल भर के खाने के लिए अनाज हो जाता है। कम बढ़ के लिए  कोटे के दुकान से मिलने वाले राशन से पूर्ति हो जाती है।
गाँव के व्रद्ध लोगों को 50 किलोमीटर दूर लेने जाना पड़ता हैं पेंशन- गाँव की गुली बाई पत्नी रामकृपाल उम्र 90 वर्ष,सिरवाता बाई उम्र 85,चुनियां पत्नी लोकनाथ उम्र 80 वर्ष ,लोकनाथ पिता हीरालाल उम्र 85 वर्ष सहित गाँव के लगभग 10 लोगों की पेंशन गांव से 50 किलोमीटर दूर बिरसिंहपुर के पास झोवंटा गांव के पंजाब नेशनल बैंक में पेंशन लेने जाना पड़ता हैं जोकि अवस्था के अनुसार आने जाने में दिक्कत होती हैं तथा कभी कभी दो तीन बार भी काम न होने पर जाना होता है जिससे किराया भाड़ा के साथ ही समय की बर्बादी होती है और समय बर्बाद जाता है।
गोड़ आदिवासी समुदाय के प्रसव होने के रीतिरिवाज और देवी देवताओं के प्रति आस्था-गांव की बुजुर्ग महिलाओं जिसमें सूरजकली उम्र 70 वर्ष,गुल्ली बाई उम्र 90 वर्ष,चुनियां बाई सहित गांव के अन्य महिलाओं एवं किशोरियों के साथ हुई बैठक के दौरान की गई चर्चा से निकलकर आया कि हम लोग अपने कुलपूज्य देव बड़े देव बाबा की पूजा करते हैं इसके साथ ही जोगनी माता,कालीमाई को भी पूजते है।जब घर मे किसी गर्भवती महिला के प्रसव होते हैं तब उसे 6 दिन तक जमीन में लिटाते हैंऔर जमींन में बिछाने के लिए कम्बल या फिर दरी देते है। बच्चे को सूपा में लेटाते हैं।मां अपना दूध पिलाने के बाद उसे सूपा में पुनः लेटा देती है और सूपा को अपने बगल में ही रखकर सोती है। यह बच्चा अपने माँ से 6 दिन तक अलग ही रहता है।यदि अस्पताल में भी प्रसव हुआ तो वहां से वापस आने के बाद यही प्रक्रिया पूरी करनी पड़ती है। 6 वें को दिन को छटी  कहते हैं ।छटी के दिन मां अपने 6 दिन तक पहने कपड़े बाहर फेक देती है और दूसरे कपड़े पहनती है।घर मे हुए बच्चे की नाल दाई काटती है।छठी के दिन घर मे बिना नमक के चावल में हल्दी व घी सहित मेवे  सहित  सोंठ,पिपरी, अजवायन,करायल,चनसुर,गुड़,डालकर बिलुई बनती है जिसे धात्री म सहित पूरे परिवार को खाने को दिया जाता है। इसके साथ ही बच्चे व पिता को अपना मुंडन कराना पता है।और पूरे परिवार को खाने के लिए नेवता देते है ।खाने में दाल,चावल,सहित पक्के पकवान बनते है।इसके बाद 12 वें दिन बरहों होता है और इस दिन धात्री मां कुएं से पानी भरने जाती है।इसके बाद से घर के काम काज करना शुरू कर  देती है।जब तक बरहों नही हो जाता तब तक घर के काम काज करने की मनाही रहती है यहां तक कि अपने खुद के कपड़े तक धोने नहीं दिया जाता है  अर्थात आराम करने दिया जाता है।कम से कम एक माह तक खाने के लिए अपनी हैसियत के अनुसार मेंवे मिलाकर लड्डू बनाकर खाने को महिला के लिये दिया जाता है। चर्चा में सम्लित श्री मती सविता सिंह उम्र 30 वर्ष ने कहा कि जब मेरी  4 वर्षी पूर्व प्रशव हुआ था तब मुझे इन सब रीत रिवाजों का पालन करना पड़ा था जन्म के 1 घण्टे के अंदर गाढ़ा पिला दूध मैने बच्ची  कुमारी साक्षी को पिलाया था अब सभी महिलाएं जन्म के 1 घण्टे के अंदर स्तनपान कराना सुरु कर देती हैं। पोष्टिक आहार बिलुई एवं गुड़ आटा मेवा मिलाकर बनाये गए लड्डू इस लिए धात्री मां को दिया जाता हैं ताकि जच्चा-बच्चा स्वथ्य रहे ।

Thursday, November 23, 2017

क्‍या हम बच्‍चों को उनके सपनों की दुनि‍या सौंप रहे हैं


राकेश कुमार मालवीय

कि‍सी को फि‍ल्‍म स्‍टार बनना है ! कि‍सी को खि‍लाड़ी बनना है ! कोई अच्‍छा प्रोफेशनल बनना चाहता है ! कि‍सी की कुछ और तमन्‍ना हो सकती है, लेकि‍न यदि‍ इस सवाल के जवाब में आपको सुनने को मि‍ले कि‍ वह तो सबसे पहले एक अच्‍छा इंसान बनना चाहते हैं, तो नि‍श्‍चि‍त ही आप आने वाले समय में एक बेहतर दुनि‍या, बेहतर समाज का सपना संजो सकते हैं।

आप यह सोच सकते हैं कि‍ मूल्‍यों के दि‍न-प्रति‍दि‍न पतन का जो दौर हम लगातार देख रहे हैं वह रूकेगा और दरकते समाज को एक सहारा जरूर मि‍लेगा। यह आशाभरी बात नि‍कल कर सामने आई है बच्‍चों की आवाज नामक एक अध्‍ययन में। इस अध्‍ययन को युनि‍सेफ के सहयोग से मध्‍यप्रदेश की दस संस्‍थाओं ने 2500 बच्‍चों के बीच कि‍या है। इस अध्‍ययन के नतीजे हाल ही में जारी कि‍ए गए हैं, जो बेहद दि‍लचस्‍प और समाज को आईना दि‍खाने वाले हैं।  

अध्‍ययन में एक सवाल यह भी था कि‍ बच्‍चे क्‍या बनना चाहते हैं ? इस सवाल के जवाब में 49 प्रति‍शत बच्‍चों ने कहा कि‍ वह एक अच्‍छा इंसान बनना चाहते हैं। 21 फीसदी बच्‍चों ने जवाब दि‍या कि‍ वह अच्‍छा प्रोफेशनल बनना चाहते हैं, (अच्‍छा प्रोफेशनल से आशय वकील, इंजीनि‍यर, डॉक्‍टर या कोई भी ऐसा पेशा जि‍ससे वह अपने कैरि‍यर को संवार सकें।) 9 प्रति‍शत बच्‍चों ने बताया कि‍ वह एक अमीर इंसान बनना चाहते हैं। यह सवाल करते हुए यह सोचा जा सकता है कि‍ ज्‍यादा बच्‍चे अमीर इंसान बनने का चयन करेंगे।

केवल 2 प्रति‍शत बच्‍चों का सपना है कि‍ वह कोई फि‍ल्‍मी कलाकार बनें, और केवल 7 प्रति‍शत ने कहा कि‍ वह खि‍लाड़ी बनना चाहते हैं। आप यह भी देखि‍ए कि‍ सभी धर्मों के सम्‍मान करने के सवाल पर 78 प्रतीक्षा बच्‍चे कहते हैं कि‍ हां सभी धमों का सम्‍मान करना चाहि‍ए और 65 प्रति‍शत बच्‍चों को कि‍सी भी जाति‍ के व्‍यक्‍ति‍ के साथ भोजन करने पर भी कोई हर्ज नहीं है।

पर क्‍या हम बच्‍चों के लायक दुनि‍या बना पाने में सफल हुए हैं। हमने तमाम दावे कि‍ए, तमाम घोषणाएं की, समझौतों पर दस्‍तख्‍त कि‍ए, लेकि‍न बच्‍चों के अधि‍कारों को समग्रता से पूरा करने में वि‍फल साबि‍त हुए हैं, इसीलि‍ए देश में तमाम कठोर कानूनों के बावजूद बच्‍चे मजदूरी में हैं, बच्‍चों के बाल वि‍वाह हो जाते हैं, बच्‍चों के साथ अपराध की परि‍स्‍थिि‍तयां बनती हैं, जो एक भयावह चेहरे को हमारे सामने लाती हैं, केवल सरकार के ही स्‍तर पर नहीं, यहां तक कि‍ हमारे घर-परि‍वार, आस- पडोस, समाज तक का एक ऐसा चेहरा सामने आता है, जि‍से देखकर हमें हैरानी होती है।

हम ज्‍यादातर मामलों में सबसे पहले सरकार को कठघरे में खडा कर देते हैं, वह सबसे आसान होता है, अपनी जि‍म्‍मेदारि‍यों से बचने का इससे आसान रास्‍ता क्‍या हो सकता है, लेकि‍न देखि‍ए कि‍ हमारे अपने घरों में भी बच्‍चों के लि‍ए कैसा वातावरण है, क्‍या घर के परि‍वेश में भी उनके समग्र वि‍कास को सुनि‍श्‍चत कि‍या जा रहा है।

जब बाल अधि‍कारों की बात होती है तो उसमें एक बि‍दु सहभागि‍ता का होता है। इस बात को लगातार उठाया ही जाता रहा है कि‍ बच्‍चों का नीति‍-निर्धारण या ऐसी ही दूसरी प्रक्रि‍याओं में कोई सहभागि‍ता नहीं होती, पर क्‍या परि‍वार के निर्णयों में भी बच्‍चे शामि‍ल होते हैं, इस सवाल के जवाब में 28 फीसदी बच्‍चों ने कहा कि‍ उनकी घर के निर्णयों में कोई सहभागि‍ता नहीं होती, 36 फीसदी बच्‍चों ने जवाब दि‍या कि‍ कभी-कभी ही उन्‍हें घर के निर्णयों में शामि‍ल कि‍या जाता है, और 36 प्रति‍शत घरों में बच्‍चों को भागीदार बनाया जाता है। जब घरों में ही बच्‍चे कि‍सी निर्णय में भागीदार नहीं हैं, तो सरकार की नीति‍यों का स्‍वरूप तो और भी वि‍शाल हो जाता है। बच्‍चों को तवज्‍जो देना एक तरह के व्‍यवहार का मसला है, इसे समग्रता में बदले बि‍ना तस्‍वीर बदलना नामुमकि‍न है।

यह अध्‍ययन यह भी बताता है कि‍ बच्‍चे तो अच्‍छा इंसान बनना चाहते हैं, लेकि‍न हम बड़े उनके लायक नहीं बन पा रहे हैं, क्‍योंकि‍ जब बच्‍चे स्‍कूल जाते हैं तो उन्‍हें सबसे ज्‍यादा डर रास्‍ते में खड़े हुए शराबि‍यों से लगता है। उन्हें अपने स्‍कूल बस-कंडक्‍टर से भी डर लगता है। इस डर को हम कैसे दूर करेंगे, बच्‍चे एक बेहद खूबसूरत दुनि‍या का ख्‍वाब बुनते हैं, पर क्‍या हम उन्‍हें एक ऐसी बुनि‍याद सौंप रहे हैं, जि‍सपर वह अपने सपनों की इमारत को खड़ा कर पाएं।


Sunday, October 22, 2017

Ground Report : सरपंच की मृत्यु हो गई और कम्प्यूटर पर रोड बनी दिख रही है !!!

उमरिया से अज़मत की रिपोर्ट

दस्तक न्याय और बाल अधिकार यात्रा जब उमरिया जिले के जूनवानी ग्राम पहुँची तब लोग सरकार को कोसते हुए नजर आए कहे कि कैसा विकास है कि 'हमारे गाँव तक पहुँच मार्ग तक नहीं बना जब की प्रधानमंत्री द्वारा गाँव की शहर से जोड़ने की लगातार घोषणा की गई है। '

दस्‍तक यात्रा जब गाँव की ओर बढ़ी जा रही थी तब जूनवानी गाँव के रोड पूरी तरह कीचड़ से भरा हुआ था। रोड के बग़ल में दूसरे गाँव के एक सज्जन के खेत से होते हुए गाड़ी आगे जा सकती थी पर वह भी अपना खेत जोत कर बोवाई कर चुके थे।

अब समस्या यह सामने आई कि गाँव तक पहुँचे कैसे ?  बड़े प्रयास के बाद ज़मीन मालिक को मना कर उनसे इजाज़त लेते हुए हम उनकी ज़मीन से होते हुए जूनवानी पहुँचे।

ग्राम में पहुँचते ही बच्चे युवा और महिलाएँ साथ आ गई। उनके चेहरे पर रोड न होने का दर्द साफ़ झलक रहा था। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व आशा के साथ बैठक कर गाँव में किशोरी और महिलाओं के स्वास्थ्य में आने वाली समस्याओं पर चर्चा किया गया।

चर्चा के बाद पोषण संवाद करने के लिए बैठे तब महिलाओं ने सरकार को कोसते हुए कहा कि हमारे साथ लगातार अन्याय ही हो रहा है। हमारे यहां पहुँच मार्ग तक नहीं बना जबकि पूरे इलाके में बन गया है। जिसके लिए सैकड़ों बार पंचायत में बात हो चुकी है पर ग्राम के विकास के लिए पंचायत कुछ नहीं कर रही है।

ग्राम जूनवानी के युवा अशोक सिंह बताते है कि सरपंच सचिव कहते हैं कि ७ साल पहले यह पहुंच मार्ग काग़ज़ों में बन चुका है जिसकी जाँच के दौरान प्रशासन ने पुराने सरपंच पर आरोप लगाया था और उससे पैसे वसूल कर यह रोड बनने की बात कही थी पर अब वह सरपंच की मृत्यु हो चुकी और कम्प्यूटर में रोड बनी दिख रही है।
इसलिए हम रोड नहीं बना सकते है।

महिलाओं ने कहा कि यहां रोड ना होने से जननी एक्सप्रेस हमारे गाँव से 2 किमी दूर खड़ी होती है जिसके चलते हमें गर्भवती महिलाओं को वहां तक ले जाने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

गाँव की युवा साथी सुनैना सिंह जो गांव से 7 किमी दूर ग्राम मज़मानीकल में 12 कक्षा में पढ़ती है, वो कहती है कि रोज़ हमें स्कूल आने—जाने में काफ़ी दिक्कतों  का सामना करना पड़ता है बरसात के दिनों में ज़्यादातर दिन स्कूल छूट जाता है।

रात्रि बैठक के दौरान ग्राम के भोन्दल सिंह ने बताया कि यहाँ वन विभाग अपनी मनमानी कर रहा है हम गाँव वालों की ज़मीन में पेड़ लगा दिया गया है, जबकि ज़मीन हमारी अपनी है जिसका पट्टा तक हमारे पास है।

ग्राम की बुजुर्ग महिला रतनी बाई कहती हैं कि 'जूनवानी ग्राम विकास के के लिए हमेशा ही ग्राम सभा में अपनी बात रखते रहे हैं। पर जब मूलभूत सुविधाओं से लगातार वंचित रखा जाता है तब आदमी बे-क़ाबू हो जाता है और बोलता है तो उसे अधिकारियों द्वारा चुप कराया जाता है और जब कोई चुप नहीं होता तो होता है टकराव। जो जूनवानी के ग्राम सभा में हमेशा ही होता आया है। इस कारण पिछले 4-5 सालों में गाँव में नहीं होती। ग्राम सभा पंचायत में होती है तो वहां तक सभी का पहुंच पाना मुश्किल है। गाँव के लोग अपनी मूलभूत समस्या जैसे ग्राम पहुँच मार्ग, पेयजल और खाद्यन को लेकर हमेशा ही परेशान रहते हैं।'

यात्रा के दौरान रात्रि बैठक में पंचायत सचिव व सरपंच कुछ समय के लिए पहुँचे जहाँ लोगों के सामने आने वाली समस्या पर बात की गई जिसमें सरपंच सचिव द्वारा रोड निर्माण और जो भी समस्या निकल कर आए उसका जल्द ही निराकरण करने की बात कही।

Tuesday, October 17, 2017

77 की बैकुंठी बाई क्यों नहीं मना पाएगी दीवाली

पन्ना से यूसुफ बेग।

बैकुन्ठी बाई w/o प्रसाद ढीमर उम्र 77 साल निवासी बॉधी कला तहसील अमानगंज जिला पन्ना की निवासी हैं। बैकुन्ठी बाई का कहना है कि वो यहॉ (कियोस्क) में 12 बजे की बैठी है, लेकिन अभी तक उनका अंगूठा मैच न हो पाने की वजह से पैसा नही निकल पा रहा है।

हमने कियोस्क आपरेटर अशोक जडिया जी से बात की तो एक नई चीज निकलकर आई । उन्होंने बताया की इनका अंगूठा मैच नहीं हो रहा इसलिये पैसा नही निकल रहा l

जब हमने पूछा कि इसका कारण क्या है तो उन्होंने बताया कि जिस उंगली या अंगूठा से प्रेस करना है वो कम्प्यूटर बता देता है कि बीच की उंगली, पहली उंगली या अंगूठा मैच कराना है लेकिन सिर्फ जिसने खाता खोला है वही जान सकता है जिस बैंक से खाता खुला है वही से पता चल सकता है कि किस उंगली अंगूठा मैच कराना है ।

उनका कहना है कि कुछ कियोस्क वाले अंगूठा प्रेस कराते हैं और किसी और उंगली को कम्प्यूटर की जानकारी में भरते हैं कि कहीं दसरी जगह फिंगर ही न मिल सके और हितग्राही उनके ही पास पहुंचे।

ऐसा भी लोग कर रहे हैं अपनी दुकानदारी चलाने के लिये और इनकी मक्कारी की सजा भुगत रहे हैं हमारे निराश्रित और विधवा बुजुर्ग l

बैकुन्ठी बाई बगैर पैसे लिये ही अपने गांव वापस चली गई। अब उनकी दीवाली कैसे मनेगी ?

दो कमरे में लगती हैं पांच कक्षाएं

( रीवा से पुष्पेन्द्र सिंह की रिपोर्ट) शासकीय प्राथमिक शाला सोहावल खुर्द, ग्राम करौंदहाई (पंचायत सोहावल खुर्द) में विद्द्यालय से ज...