Thursday, November 23, 2017

क्‍या हम बच्‍चों को उनके सपनों की दुनि‍या सौंप रहे हैं


राकेश कुमार मालवीय

कि‍सी को फि‍ल्‍म स्‍टार बनना है ! कि‍सी को खि‍लाड़ी बनना है ! कोई अच्‍छा प्रोफेशनल बनना चाहता है ! कि‍सी की कुछ और तमन्‍ना हो सकती है, लेकि‍न यदि‍ इस सवाल के जवाब में आपको सुनने को मि‍ले कि‍ वह तो सबसे पहले एक अच्‍छा इंसान बनना चाहते हैं, तो नि‍श्‍चि‍त ही आप आने वाले समय में एक बेहतर दुनि‍या, बेहतर समाज का सपना संजो सकते हैं।

आप यह सोच सकते हैं कि‍ मूल्‍यों के दि‍न-प्रति‍दि‍न पतन का जो दौर हम लगातार देख रहे हैं वह रूकेगा और दरकते समाज को एक सहारा जरूर मि‍लेगा। यह आशाभरी बात नि‍कल कर सामने आई है बच्‍चों की आवाज नामक एक अध्‍ययन में। इस अध्‍ययन को युनि‍सेफ के सहयोग से मध्‍यप्रदेश की दस संस्‍थाओं ने 2500 बच्‍चों के बीच कि‍या है। इस अध्‍ययन के नतीजे हाल ही में जारी कि‍ए गए हैं, जो बेहद दि‍लचस्‍प और समाज को आईना दि‍खाने वाले हैं।  

अध्‍ययन में एक सवाल यह भी था कि‍ बच्‍चे क्‍या बनना चाहते हैं ? इस सवाल के जवाब में 49 प्रति‍शत बच्‍चों ने कहा कि‍ वह एक अच्‍छा इंसान बनना चाहते हैं। 21 फीसदी बच्‍चों ने जवाब दि‍या कि‍ वह अच्‍छा प्रोफेशनल बनना चाहते हैं, (अच्‍छा प्रोफेशनल से आशय वकील, इंजीनि‍यर, डॉक्‍टर या कोई भी ऐसा पेशा जि‍ससे वह अपने कैरि‍यर को संवार सकें।) 9 प्रति‍शत बच्‍चों ने बताया कि‍ वह एक अमीर इंसान बनना चाहते हैं। यह सवाल करते हुए यह सोचा जा सकता है कि‍ ज्‍यादा बच्‍चे अमीर इंसान बनने का चयन करेंगे।

केवल 2 प्रति‍शत बच्‍चों का सपना है कि‍ वह कोई फि‍ल्‍मी कलाकार बनें, और केवल 7 प्रति‍शत ने कहा कि‍ वह खि‍लाड़ी बनना चाहते हैं। आप यह भी देखि‍ए कि‍ सभी धर्मों के सम्‍मान करने के सवाल पर 78 प्रतीक्षा बच्‍चे कहते हैं कि‍ हां सभी धमों का सम्‍मान करना चाहि‍ए और 65 प्रति‍शत बच्‍चों को कि‍सी भी जाति‍ के व्‍यक्‍ति‍ के साथ भोजन करने पर भी कोई हर्ज नहीं है।

पर क्‍या हम बच्‍चों के लायक दुनि‍या बना पाने में सफल हुए हैं। हमने तमाम दावे कि‍ए, तमाम घोषणाएं की, समझौतों पर दस्‍तख्‍त कि‍ए, लेकि‍न बच्‍चों के अधि‍कारों को समग्रता से पूरा करने में वि‍फल साबि‍त हुए हैं, इसीलि‍ए देश में तमाम कठोर कानूनों के बावजूद बच्‍चे मजदूरी में हैं, बच्‍चों के बाल वि‍वाह हो जाते हैं, बच्‍चों के साथ अपराध की परि‍स्‍थिि‍तयां बनती हैं, जो एक भयावह चेहरे को हमारे सामने लाती हैं, केवल सरकार के ही स्‍तर पर नहीं, यहां तक कि‍ हमारे घर-परि‍वार, आस- पडोस, समाज तक का एक ऐसा चेहरा सामने आता है, जि‍से देखकर हमें हैरानी होती है।

हम ज्‍यादातर मामलों में सबसे पहले सरकार को कठघरे में खडा कर देते हैं, वह सबसे आसान होता है, अपनी जि‍म्‍मेदारि‍यों से बचने का इससे आसान रास्‍ता क्‍या हो सकता है, लेकि‍न देखि‍ए कि‍ हमारे अपने घरों में भी बच्‍चों के लि‍ए कैसा वातावरण है, क्‍या घर के परि‍वेश में भी उनके समग्र वि‍कास को सुनि‍श्‍चत कि‍या जा रहा है।

जब बाल अधि‍कारों की बात होती है तो उसमें एक बि‍दु सहभागि‍ता का होता है। इस बात को लगातार उठाया ही जाता रहा है कि‍ बच्‍चों का नीति‍-निर्धारण या ऐसी ही दूसरी प्रक्रि‍याओं में कोई सहभागि‍ता नहीं होती, पर क्‍या परि‍वार के निर्णयों में भी बच्‍चे शामि‍ल होते हैं, इस सवाल के जवाब में 28 फीसदी बच्‍चों ने कहा कि‍ उनकी घर के निर्णयों में कोई सहभागि‍ता नहीं होती, 36 फीसदी बच्‍चों ने जवाब दि‍या कि‍ कभी-कभी ही उन्‍हें घर के निर्णयों में शामि‍ल कि‍या जाता है, और 36 प्रति‍शत घरों में बच्‍चों को भागीदार बनाया जाता है। जब घरों में ही बच्‍चे कि‍सी निर्णय में भागीदार नहीं हैं, तो सरकार की नीति‍यों का स्‍वरूप तो और भी वि‍शाल हो जाता है। बच्‍चों को तवज्‍जो देना एक तरह के व्‍यवहार का मसला है, इसे समग्रता में बदले बि‍ना तस्‍वीर बदलना नामुमकि‍न है।

यह अध्‍ययन यह भी बताता है कि‍ बच्‍चे तो अच्‍छा इंसान बनना चाहते हैं, लेकि‍न हम बड़े उनके लायक नहीं बन पा रहे हैं, क्‍योंकि‍ जब बच्‍चे स्‍कूल जाते हैं तो उन्‍हें सबसे ज्‍यादा डर रास्‍ते में खड़े हुए शराबि‍यों से लगता है। उन्हें अपने स्‍कूल बस-कंडक्‍टर से भी डर लगता है। इस डर को हम कैसे दूर करेंगे, बच्‍चे एक बेहद खूबसूरत दुनि‍या का ख्‍वाब बुनते हैं, पर क्‍या हम उन्‍हें एक ऐसी बुनि‍याद सौंप रहे हैं, जि‍सपर वह अपने सपनों की इमारत को खड़ा कर पाएं।


Sunday, October 22, 2017

Ground Report : सरपंच की मृत्यु हो गई और कम्प्यूटर पर रोड बनी दिख रही है !!!

उमरिया से अज़मत की रिपोर्ट

दस्तक न्याय और बाल अधिकार यात्रा जब उमरिया जिले के जूनवानी ग्राम पहुँची तब लोग सरकार को कोसते हुए नजर आए कहे कि कैसा विकास है कि 'हमारे गाँव तक पहुँच मार्ग तक नहीं बना जब की प्रधानमंत्री द्वारा गाँव की शहर से जोड़ने की लगातार घोषणा की गई है। '

दस्‍तक यात्रा जब गाँव की ओर बढ़ी जा रही थी तब जूनवानी गाँव के रोड पूरी तरह कीचड़ से भरा हुआ था। रोड के बग़ल में दूसरे गाँव के एक सज्जन के खेत से होते हुए गाड़ी आगे जा सकती थी पर वह भी अपना खेत जोत कर बोवाई कर चुके थे।

अब समस्या यह सामने आई कि गाँव तक पहुँचे कैसे ?  बड़े प्रयास के बाद ज़मीन मालिक को मना कर उनसे इजाज़त लेते हुए हम उनकी ज़मीन से होते हुए जूनवानी पहुँचे।

ग्राम में पहुँचते ही बच्चे युवा और महिलाएँ साथ आ गई। उनके चेहरे पर रोड न होने का दर्द साफ़ झलक रहा था। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता व आशा के साथ बैठक कर गाँव में किशोरी और महिलाओं के स्वास्थ्य में आने वाली समस्याओं पर चर्चा किया गया।

चर्चा के बाद पोषण संवाद करने के लिए बैठे तब महिलाओं ने सरकार को कोसते हुए कहा कि हमारे साथ लगातार अन्याय ही हो रहा है। हमारे यहां पहुँच मार्ग तक नहीं बना जबकि पूरे इलाके में बन गया है। जिसके लिए सैकड़ों बार पंचायत में बात हो चुकी है पर ग्राम के विकास के लिए पंचायत कुछ नहीं कर रही है।

ग्राम जूनवानी के युवा अशोक सिंह बताते है कि सरपंच सचिव कहते हैं कि ७ साल पहले यह पहुंच मार्ग काग़ज़ों में बन चुका है जिसकी जाँच के दौरान प्रशासन ने पुराने सरपंच पर आरोप लगाया था और उससे पैसे वसूल कर यह रोड बनने की बात कही थी पर अब वह सरपंच की मृत्यु हो चुकी और कम्प्यूटर में रोड बनी दिख रही है।
इसलिए हम रोड नहीं बना सकते है।

महिलाओं ने कहा कि यहां रोड ना होने से जननी एक्सप्रेस हमारे गाँव से 2 किमी दूर खड़ी होती है जिसके चलते हमें गर्भवती महिलाओं को वहां तक ले जाने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।

गाँव की युवा साथी सुनैना सिंह जो गांव से 7 किमी दूर ग्राम मज़मानीकल में 12 कक्षा में पढ़ती है, वो कहती है कि रोज़ हमें स्कूल आने—जाने में काफ़ी दिक्कतों  का सामना करना पड़ता है बरसात के दिनों में ज़्यादातर दिन स्कूल छूट जाता है।

रात्रि बैठक के दौरान ग्राम के भोन्दल सिंह ने बताया कि यहाँ वन विभाग अपनी मनमानी कर रहा है हम गाँव वालों की ज़मीन में पेड़ लगा दिया गया है, जबकि ज़मीन हमारी अपनी है जिसका पट्टा तक हमारे पास है।

ग्राम की बुजुर्ग महिला रतनी बाई कहती हैं कि 'जूनवानी ग्राम विकास के के लिए हमेशा ही ग्राम सभा में अपनी बात रखते रहे हैं। पर जब मूलभूत सुविधाओं से लगातार वंचित रखा जाता है तब आदमी बे-क़ाबू हो जाता है और बोलता है तो उसे अधिकारियों द्वारा चुप कराया जाता है और जब कोई चुप नहीं होता तो होता है टकराव। जो जूनवानी के ग्राम सभा में हमेशा ही होता आया है। इस कारण पिछले 4-5 सालों में गाँव में नहीं होती। ग्राम सभा पंचायत में होती है तो वहां तक सभी का पहुंच पाना मुश्किल है। गाँव के लोग अपनी मूलभूत समस्या जैसे ग्राम पहुँच मार्ग, पेयजल और खाद्यन को लेकर हमेशा ही परेशान रहते हैं।'

यात्रा के दौरान रात्रि बैठक में पंचायत सचिव व सरपंच कुछ समय के लिए पहुँचे जहाँ लोगों के सामने आने वाली समस्या पर बात की गई जिसमें सरपंच सचिव द्वारा रोड निर्माण और जो भी समस्या निकल कर आए उसका जल्द ही निराकरण करने की बात कही।

Tuesday, October 17, 2017

77 की बैकुंठी बाई क्यों नहीं मना पाएगी दीवाली

पन्ना से यूसुफ बेग।

बैकुन्ठी बाई w/o प्रसाद ढीमर उम्र 77 साल निवासी बॉधी कला तहसील अमानगंज जिला पन्ना की निवासी हैं। बैकुन्ठी बाई का कहना है कि वो यहॉ (कियोस्क) में 12 बजे की बैठी है, लेकिन अभी तक उनका अंगूठा मैच न हो पाने की वजह से पैसा नही निकल पा रहा है।

हमने कियोस्क आपरेटर अशोक जडिया जी से बात की तो एक नई चीज निकलकर आई । उन्होंने बताया की इनका अंगूठा मैच नहीं हो रहा इसलिये पैसा नही निकल रहा l

जब हमने पूछा कि इसका कारण क्या है तो उन्होंने बताया कि जिस उंगली या अंगूठा से प्रेस करना है वो कम्प्यूटर बता देता है कि बीच की उंगली, पहली उंगली या अंगूठा मैच कराना है लेकिन सिर्फ जिसने खाता खोला है वही जान सकता है जिस बैंक से खाता खुला है वही से पता चल सकता है कि किस उंगली अंगूठा मैच कराना है ।

उनका कहना है कि कुछ कियोस्क वाले अंगूठा प्रेस कराते हैं और किसी और उंगली को कम्प्यूटर की जानकारी में भरते हैं कि कहीं दसरी जगह फिंगर ही न मिल सके और हितग्राही उनके ही पास पहुंचे।

ऐसा भी लोग कर रहे हैं अपनी दुकानदारी चलाने के लिये और इनकी मक्कारी की सजा भुगत रहे हैं हमारे निराश्रित और विधवा बुजुर्ग l

बैकुन्ठी बाई बगैर पैसे लिये ही अपने गांव वापस चली गई। अब उनकी दीवाली कैसे मनेगी ?

Local Food : साल के एक खास दिन 100 रुपए किलो मिलती है यह चीज

रीवा से जयकुमार की रिपोर्ट
जंगल और लोगों का आपस में क्या रिश्ता होता है इसे आप इस छोटे से उदाहरण से समझ सकते हैं। जंगल कभी लोगों को भूखा नहीं रख सकता और वह लोग जिनका जंगल से इस तरह का सघन रिश्ता रहा है वह भी जंगल के प्रति कभी क्रूर व्यवहार नहीं करते। वह जंगल से उतना ही प्राप्त करते हैं, जिसकी उन्हें जरूरत होती है।

विकास को हम आज पागल करार दे रहे हैं वास्तव में विकास का पागलपन बहुत पहले से शुरू हुआ है और उसी ने इस प्रकृति और इंसान के इस ताने—बाने को बर्बाद कर ​दिया है।

यह कुशुमकली हैं। रीवा जिले की निवासी। मेहनत—मजदूरी से अपना घर चलाती हैं, लेकिन इसी बीच इनकी दिनचर्या में ऐसे काम भी शामिल हैं जो इनकी खाद्य और पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।

जब यह मजदूरी करने नहीं जातीं तो यह जंगल से" फसही" की धान इकट्ठा करके लाती हैं। ये मुख्यतः सितम्बर माह में पाई जाती है, जब बारिश बंद हो जाती है और यह धान पक जाती है।

ये जंगलों के पोखर में मिलने वाली धान है। ये धान प्रकृति द्वारा मानव को उपहार में मिलती क्योंकि इसे तैयार करने में इंसान को मेहनत नही करनी पड़ती।


केवल बारिश के बाद वाले समय में जंगलों से इकठ्ठा करके लाना पड़ता है। इसके बाद इसे सुखा कर धान को कूटने के पश्चात बड़े ही चाव से इसका स्वाद लिया जाता है। यह स्वाद में बेहद अच्छी और पोषण से भरपूर होती है।

इस धान का धार्मिक महत्व भी है। समाज में हल षष्टी के दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है,क्योंकि इस दिन महिलाएं उपवास के दौरान इस धान के चावल को ही खाती हैं।

उन दिनों ये धान 100 रुपये किलो में मिलती है। आम दिनों में इसकी कीमत बाजार में 40-50 रुपये में होती है। जिसे वनवासी समुदाय अपनी आजीविका के लिए इसे जंगलों से इकठ्ठा करके जीवन यापन कर रहे हैं।

"फसही"धान भी परम्परा धानो जैसे कोदो, कुटकी, सामा, गवर्वा, इत्यादि की नस्लो में से एक धान है। यह वन क्षेत्रों में तालाब नुमा  पोखर, नमी वाली जगहों पर स्वयं से उगती है। इस धान के बाली  नुकीली होती है। जिसके कारण पशु नुकसान नही पहुँचा पाते जिसके कारण यह सुरक्षित रहती है।

हालाकि इसके उत्पादन क्षमता में कमी होने लगी है। क्योंकि लोग इस धान की पूरी बाली इकट्ठा कर रहे हैं जिसके कारण जमीन में बीज नही गिरने पाता, तो ये आगे विलुप्त भी हो सकती है। 



Monday, October 16, 2017

EXPOSE: दिवाली से पहले बिजली विभाग ने दिया झटका, बिना कनेक्शन के पकड़ाया हजारों का बिल

उमरिया से अज़मत की रिपोर्ट 
उमरिया जिले के ग्राम डोगरगवाँ जनपद करकेली के निवासी टिल्लु बैगा के घर में कभी लाइट जली ही नहीं, न ही कोई मीटर लगा। फिर भी उसे बिजली विभाग ने हजारों रुपयों का बिल पकड़ा दिया। इससे टिल्लू बैगा हैरान परेशान है।

जिले में न्याय एवं बाल अधिकार यात्रा जब डोगरगवां पहुंची तो यहां बिजली विभाग के इस कारनामे का पता चला। यहां के निवासी टिल्लू बैगा को बिजली विभाग द्वारा उनके नाम से 13227 (तेरह हज़ार दो सौ सत्ताइस) रुपए का बिल पकड़ा दिया गया है।

जब टिल्लू बैगा द्वारा बिजली विभाग में यह शिकायत दर्ज की गई तो वहां बैठे कर्मचारियों ने कहा गया कि इस बार दे दो फिर आगे से आपका कनेक्शन काट दिया जाएगा।

बैगा आदिवासियों को बिजली विभाग द्वारा हमेशा ही ऐसे बिल थमाए जाते है जिसकी जानकारी बिजली विभाग व कलेक्टर को हमेशा ही ग्रामीणों द्वारा दी जाती है पर इस पर कोई एक्शन नहीं लिया गया है।

करकेली जनपद के कई ग्रामों में बिजली विभाग द्वारा ट्रांसफ़रमार निकल गाँव की अंधेरे में डुबा दिया गया है और कारण कुछ लोगों के बिल जमा ना होना बताया जाता है।

जबकि गाँव के सारे लोग बताते है कि टिल्लू बैगा के घर में कभी भी बिजली जलते हुए नहीं देखा गया है। इसका एक पंचनामा भी ग्रामवासियों ने तैयार किया है कि टिल्लू बैगा ने आजतक अपने घर में बिजली नहीं जलाई है।

टिल्लू बैगा को मिले बिल में एवरेज मीटर रीडिंग के आधार पर बिल ​दिया गया है, हैरानी की बात है कि टिल्लू के घर में न टीवी है, न फ्रिज है न पंखा है, फिर भी एक छोटे से घर में उसने 75 यूनिट बिजली कैसे जलाई होगी। इस बिल में महानायक अमिताभ बच्चन की तस्वीर नजर आ रही है।


( इस खबर को मीडिया के साथी अपने यहां भी प्रकाशित कर सकते हैं।- एमपी दस्तक  )

PHOTO BLOG: कल्याणपुर के बच्चों की रचनात्मकता देखिए


पन्‍ना जि‍ले के कल्याणपुर के मुन्नू गोंड पिता दस्सी गोंड ने पोषण न्याय बाल अधिकार यात्रा के दौरान लगाई अपने हाथों से बनाए गए मिट्टी के खिलौनों की प्रदर्शनी। आप भी देखि‍ए और शाबास कहि‍ए।






ऐसी आंगनवाड़ी में कैसे होगा बच्चों का संपूर्ण विकास

पन्ना से युसूफ बेग की रिपोर्ट
न तस्वीरों को देखिए। यह आंगनवाड़ी भवन है। पन्ना जिले के कल्याणपुर मडैयन की इस आंगनवाड़ी को देखकर आप समझ सकते हैं कि यहां किस तरह बच्चों का संपूर्ण विकास होता होगा।

इस केन्द्र की कार्यकर्ता दुर्गेश यादव का कहना है कि वह इस केन्द्र में 2006 से तैनात है। जिस घर में आंगनवाड़ी चल रही है वह घर किराए का है। यह घर हल्की बटु गौड़ का है। गांव में ऐसा कोई दूसरा घर उन्हें नहीं मिल रहा जो ठीक—ठाक हो। भवन की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण बच्चें भी इसमें नहीं आते और मां बाप भी नहीं भेजते हैं।

उन्होंने कई बार अपने विभाग में लिखकर दिया है पंचायत द्वारा ग्रामसभा में भी प्रस्ताव डाला गया, लेकिन अभी तक आंगनवाडी भवन निर्माण नहीं हुआ।

आज सुबह पोषण न्याय बाल अधिकार यात्रा के पहुंचने पर यहां की आंगनवाडी कार्यकर्ता ने लिखित में दिया पत्र जो यात्रा के माध्यम से जिला प्रशासन को दिया जाएगा।  
 
 

Sunday, October 15, 2017

Expose : 75 की बेटी बाई क्यों है राशन—पेंशन से वंचित

एमपी दस्तक के लिए अजमत की रिपोर्ट 

उमरिया। मध्यप्रदेश सरकार ने हाल ही में बुजुर्गों का सम्मान किया और कहा कि राज्य में उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी, लेकिन जमीनी हालात इससे जुदा है। शहर से दूर दराज़ के गांवों में बुजुर्ग अपने अधिकारों से वंचित हैं। जिले में निकाली जा रही न्याय एवं बाल अधिकार यात्रा में ऐसी ही कहानियां देखने को मिल रही हैं। 

जिले में आधार कार्ड नहीं बनने से बुजुर्ग पेंशन से वंचित हो रहे हैैं। समस्या यह आ ही है कि बुज़ुर्गों की अंगुलियां आधार मशीन में पकड़ में नहीं आ पातीं। इससे उनके आधार कार्ड ही नहीं बनते हैं। इस नियम को लागू होने के बाद बुजुर्ग बड़ी संख्या में खाद्यान्न से वंचित हो रहे हैं। 

ग्राम मगरघरा की बेटीबाई 75 साल की हैं। वह चल फिर भी नहीं पाती। अब तो अपने से बाहर भी नहीं जा सकती है। ऐसे स्थिति में जहाँ सरकार पोषण की सुरक्षा पर करोड़ों रुपय ख़र्च कर रही है वहीं आधार कार्ड न बनने से इसका पेंशन व खाद्यन पिछले 6 माह से बंद कर दिया गया है।

बेटी बाई के बेटे सहदेव सिंह बताते है कि आधार कार्ड बनवाने के लिए 3-4 बार उमरिया ले कर जाना हुआ है इस दौरान 200 रुपए भी ख़र्च हुए है लेकिन हाथ का अँगूठा व आँख में मशीन के न आने से आधार कार्ड नहीं बन सका। 

सरकार की योजना में हम जैसे ग़रीबो के लिए कुछ भी नहीं है। आपने यह भी कहा कि शिवराज सरकार हो या मोदी सरकार सब को हमारे गाँव आकर देखना होगा। 

सरकार को पेंशन और राशन के लिए ऐसे बुजुर्गों के लिए कोई विकल्प सोचना चाहिए। 


VIDEO: यहां कोई ब्याह शादी नहीं, बच्चों के लिए पक रहा है भोजन

उमरिया। देखिए, महिलाएं किस उत्साह, आत्मीयता और प्रेम से अपने समुदाय के बच्चों के लिए भोजन पका रही हैं। दस्तक यात्रा के दौरान उमरिया जिले में यह उत्साह देखने को मिला। यदि इस तरह आत्मीयता और पोषण से भरपूर भोजन देश के हर गांव—समुदाय के बच्चों को मिले तो भला कुपोषण कैसे दूर न हो। पर नीतियों में यह कहां। सरकार बस एक पैकेट भेज देती है। उससे कहां बच्चे तंदुरूस्त होने वाले हैं। 






Saturday, October 14, 2017

13th day of Dastak Journey : A 50 days event

Children are learning "Web of Life" through game.

Youth are engage in beautification of Anganwadi. 

Women group are actively participating in meeting and discussion. 

Children are ready to draw something.

Teacher is motivating children for painting.

Friday, October 13, 2017

VIDEO: 80 साल का हो जाउंगा तब मिलेगी पेंशन, एक नेत्रहीन की कहानी, उसी की जुबानी

सतना। मध्यप्रदेश के चार जिलों में दस्तक न्याय एवं बाल अधिकार यात्रा निकाली जा रही है। इस दौरान तरह—तरह के अच्छे और बुरे अनुभव सामने आ रहे हैं। सतना जिले के एक गांव में एक ऐसे नेत्रहीन व्यक्ति मिले जो सत्तर साल के होने के बावजूद पेंशन से वंचित हैं। वह कई बार सरकारी कार्यालयों के चक्कर काट चुके हैं। उनसे कहा जाता है कि वे जब अस्सी साल के हो जाएंगे तब उनकी पेंशन दी जाएगी।  

सतना से शिवकैलाश की रिपोर्ट....

 

BLOG: गांव का नाम मगरधरा ही क्यूँ पड़ा ?



Santosh Vaishnav

संतोष वैष्णव विकास संवाद के साथी हैं। उनकी भूमिका अकाउंट्स देखने की है। दस्तक यात्रा के दौरान अपनी रुचि से वह फील्ड में उमरिया पहुंचे और पूरे दो दिन का वक्त बिताया। उमरिया से लौटकर इस ब्लॉग पर वह अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। 
-


वैसे तो वर्तमान में कहीं भी जीवन जीना इतना आसान नहीं है लेकिन शहरों की अपेक्षा गांवों में जीवन जीने के मायने बिल्कुल विपरीत होते हैं. इसका अनुभव उमरिया जिले में फील्ड में जाने के बाद हुआ. 
  
दस्तक परियोजना और दस्तक यात्रा के अंतर्गत उमरिया जाने का मौका मिला. ११ अक्टूबर को उमरिया पहुँचने पर पहले दिन मगरधरा गाँव पहुंचे, जो की अमडी पंचायत के करकेली ब्लाक में आता है. सभी साथी दोपहर के भोजन की तैयारी में जुटे थे. गांव के लोगों ने पारंपरिक ढंग से टीका लगाकर फूलों के गुलदस्ते देकर स्वागत किया. भोजन में समय था तो संदीप भाई और  गांव के लोगों के साथ चर्चा होने लगी. 
 
गांव का नाम मगरधरा ही क्यूँ पड़ा ? संदीप भाई ने पुछा.  इस पर गांव के एक दादा बताते है कि बड़े बुजुर्गों के मुँह से सुना है साहब, गांव के पास एक नदी हुआ करती थी जिसमें एक मगर रहता था, कोई भी उस नदी में जाता तो मगर उसे धर लेता था, इसलिए इस गांव का नाम मगरधरा हुआ लेकिन धीरे धीरे यह मगरघरा हो गया है. 

गांव के एक युवा साथी संतोष ने अन्य लोगों के साथ गांव में पैदा होने वाले अनाज, सब्जी और फलों के बारे में बताया. साथ ही जिस चीज का उत्पादन बिलकुल खत्‍म हो चुका है उसके बारे में जानकारी दी. 

पहली बार कोदो, कुटकी, मुनगा भाजी, चचीणा, वन भाजी, पौ भाजी जैसी  सब्जीयों और अनाजों के बारे में जाना और उनके नाम सुने और स्वाद भी चखा. शायद कुछ चीजों को हम दूसरे नाम से भी जानते हैं. 

सुजीत सिंह जो कि गांव में रहने वाले युवा साथी है, 12 वीं कक्षा पास करके उमरिया में डीसीए की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्हें रोजाना साइकिल से जाना होता है जो कि लगभग 10 से 12 किलोमीटर दूर है. 

कालेज के बारे में पूछने पर सुजीत बताते हैं कि कम प्रतिशत आने के कारण कालेज में दाखिला नहीं मिल पाया इसलिए कंप्यूटर सीखने का मन बना लिया. आगे पढ़ाई जारी रखूँगा. पढ़ने का जोश जज्‍बा सुजीत में साफ झलक रहा था जो अपने आप में गांव के बच्चों के लिए लाभकारी है. स्वादिष्ट भोजन करने के उपरांत अगले दिन कि तैयारी के लिए उमरिया पुनः लौट आये 

            
अगले दिन ग्राम डोंगरगवां पहुंचे जो करकेली ब्लाक के कोहका पंचायत में आता है. जहाँ सबसे पहले गांव के स्कूल में मास्टर साहब से मुलाकात हुई. मास्टर साहब थोड़े घबराए से लग रहे थे. डोंगरगवां में 1 से 5 कक्षा तक स्कूल है, आज 51 बच्चों की उपस्थिति थी और वो सब लोग पढ़ाई कर रहे थे.

हमें देखकर अजीब सी नजरों से निहारने लगे, कई सवाल उनकी नज़रों में थे. उनसे बातचीत करने पर बच्चों के मन में डर साफ झलक रहा था. परन्तु बच्चों के साथ बच्चा बनने पर वह डर थोड़ी देर में खत्म हो गया और बच्चे हमारे साथ सहजता से घुल मिल गए. उन्हें एक खेल खिलाया गया पहचानो कौन ? 

हमारे पास बहुत सारे कार्ड्स थे जिसमें बंदर, शेर, भालू , मछली, सांप, इत्यादि के चित्र थे. खेल-खेल में बच्चों ने जानवरों के नाम, गिनती, पहाड़े, एबीसीडी आसानी से बताना शुरू किया,  कुछ को नहीं आया और कुछ बच्चे बड़ी होशियारी के साथ जवाब दे रहे थे. सभी बच्चों को खो-खो और कबडडी खिलाने के बाद टाफियां बांटी. 

उसके बाद हम सभी आँगनबाड़ी पहुंचे. जहाँ दस्तक टीम के सभी साथी आंगनवाडी को कागज के बनाये गए चित्रों से सजा रहे थे. उनके साथ गांव की किशोरियां भी मौजूद थी, जो उनके काम में हाथ बटा रही थी और चित्र बना रही थी. 

वहाँ पर आंगनवाडी कार्यकर्ता और आशा भी मौजूद थी. संदीप दादा ने आंगनवाडी में बच्चों को मिलने वाले भोजन के बारे में पूछा. गांव में वर्तमान में गर्भवती एवं धात्री महिलाओं की संख्या की जानकारी ली. गर्भावस्था  के दौरान किस तरह से अस्पताल पहुंचा जाता है, बच्चा पैदा होने पर अस्पताल में किसी से पैसों की मांग की जाती है इत्यादि सवाल जवाब के साथ चर्चा को विराम दिया 
 
शाम ढलने को थी गांव के युवा साथी इकट्ठा हुए जहाँ सभी को एक खेल खिलाया गया जिसका नाम वेब ऑफ लाइफ (जीवन का मकड जाल) है. कुछ कार्ड्स जिसमें मिट्टी, नदियाँ, बादल, पेड़, जानवर, मछली, बीज, पानी, इत्यादि के चित्र बने थे सभी को एक एक चित्र दिया गया. 

इस खेल में हम एक दूसरे पर किस तरह से निर्भर हैं बताया गया और एक रस्सी के सहारे अपने आप एक जाल बनता चला गया. मिट्टी / भूमि से बादल, बादल से बारिश, बारिश से नदियाँ कुएं तालाब और उपजाऊ जमीन होगी, जमीन से अनाज, फल, सब्जियां इत्यादि का उत्पादन होगा जो हमारे जीवन में महत्व्पूर्ण हैं जिनके बिना हमारा जीवन शून्य है. 

एक भी चीज़ हमसे अलग होती है तो उसका प्रभाव हमारे जीवन को कितना नुकसान देता है इस खेल से युवा साथियों ने जाना. संदीप दादा ने जंगल को काटने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया. 


12th day of Dastak Journey : A 50 days event

Creativity of children

One of the special variety of rice "Phasi Dhaan", the tribal women is processing at early morning.

Mrs. Guljaria Kol's kitchen garden

Children are excited to perform the activity. 

Women are learning how to prepare nutritive dishes from locally available food resources. 
 Women are actively involve in PLA Activity 

11th day of Dastak Journey : A 50 days event


Youth involve in  "Web Of Life" Game and learning how every single thing of nature is important. 

Rally initiated by school children for supporting journey and its concept


Under Mission Indradhanush ANM doing immunization to those children who were left 

Children involved and busy in painting and showing their creativity.

Women are participating in PLA Activity. 

Meeting with children to aware them about their rights.
children are learning Origamy in night meeting and youth is facilitating them.

STORY : शिव को कब मिलेगा वनाधिकार का पट्टा

शिव प्रसाद बैगा ग्राम डोगर गवां के निवासी है. वन अधिकार के अंतर्गत पट्टे के लिए आवेदन किया था परन्तु दो बार देने के बाद भी कुछ नहीं हुआ।
अभी कलेक्टर के यहां जनसुनवाई में फिर आवेदन दिया। जून में यह जनसुनवाई में दिया था परन्तु कुछ नहीं हुआ।
आज गांव में मेरे सामने शिव प्रसाद ढेर सारे आवेदन की प्रतियां लेकर खड़े है और पूछ रहे है कि वन अधिकार पत्र कब मिलेगा? वन विभाग कहता है कि यह वन विकास निगम देगा क्योंकि यह उसके कार्य क्षेत्र का मामला है।
इस गांव में शिव प्रसाद बैगा अकेले नहीं है जिनकी यह दुर्दशा है बल्कि दस और ऐसे किसान और बैगा आदिवासी है जो दमन अत्याचार के शिकार है। जबकि बैगा तो पीजी जनजाति समुदाय में आते है।

Thursday, October 12, 2017

Blog : बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहां ये जानकर

उमरिया से संदीप नाईक
यात्रा कल सुबह ही डोगर गवां पहुंची थी। जिस गांव में टीम रात्रि विश्राम करती है तो कई प्रकार के काम करते है। भोर में यात्रा टीम गांव के बीच पहुंच जाती है फिर लोगों से बात करके गांव की सफाई करते है मुख्य मार्ग से गांव की गलियों की नाली और घूरे की इसमें शुरू में समुदाय थोड़ा हिचकिचाता है पर थोड़ी देर में सहज होकर अपने घर से झाडू के आते है और साथ में जुट जाते है।
 कई गांव में पंच सरपंच और शाला विकास समिति के सदस्य भी जुड़ जाते है। फिर पानी के स्रोत देखें जाते है और हैंडपंप के आसपास सोखता गड्ढा बनाना, छोटे नालों और नदी पर बोरी बंधान का काम भी करते है। यह सब करते करते ग्यारह बज जाते है। भोजन की तैयारी शुरू करते है, सामूहिक रूप से पौष्टिक भोजन बनाना सिखाया जाता है और सब लोग साथ भोजन करते है।
पौष्टिक भोजन कैसे पकाया जाएं इसका प्रशिक्षण अजमत और भूपेंद्र त्रिपाठी करते है। भोजन बनाने के बाद सब लोग साथ बैठते है, भोजन शुरू करने से पहले अजमत भोजन मंत्र पढ़वाते है सबको जिसके बोल है
"मेहनत कर मजदूर किसानों ने जो अन्न उगाया
उसी अन्न को मेहनत कर यह भोजन गया पकाया
भोजन से पहले श्रम के प्रति हम सम्मान जताएं
कोई भूखा नहीं रहे यह सोच प्रेम से खाएं
आज का भोजन सबसे अच्छा"
यह मंत्र पढ़कर सब भोजन शुरू करते है। बच्चे महिलाएं और बड़े बुजुर्ग एक साथ बगैर किसी भेद भाव के भोजन कर फिर चर्चा में बैठते है। गांव की समस्या, दिक्कतें, अच्छाईयां और क्या मिलकर किया जा सकता है।
दोपहर तक लोगों के साथ अच्छी बात हो जाती है इसके बाद स्कूल और आंगनवाड़ी में टीम गांव के युवा किशोर किशोरियों के साथ पहुंचती है और बच्चो के साथ खेल कूद कर बातचीत होती है। बच्चे जाने के बाद सब लोग मिलकर आंगनवाड़ी और स्कूल की सफाई करते है। लग्गी, चित्र, पोस्टर, ऑरिगेमी के आइटम और बच्चों के बनाए खिलौनों से केंद्र को आकर्षक बनाया जाता है।
शाम को पूरी टीम कुछ आत्म विश्लेषण करती है आज के दिन की गतिविधियों केे साथ-साथ गांव की समस्याओं पर बातचीत होती है और संभावित एक्शन पर बात होती है। फेसबुक और व्हाट्स एप पर छोटी रपट और सूचनाएं बाकी जिलों के साथियों के साझा की जाती है। एक रजिस्टर में दिनभर की बातचीत और विश्लेषण को दर्ज किया जाता है। प्रशासन को अवगत कराया जाता है और कोशिश की जाती है कि समस्याओं पर ठोस पहल हो।
रात में गांव के सार्वजनिक स्थान पर जैसे चबूतरे ,नीम के पेड़ के नीचे या पंचायत भवन पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है जहां हर कोई बगैर डर और संकोच के आ सकें और भागीदारी कर सकें। इस कार्यक्रम में गांव के परंपरागत गीत, संस्कृति और नृत्य के आयोजन हो रहे है। बड़े बुजुर्ग लोग भी अपने जमाने को याद करके झूमने लगते है और युवा किशोर अचरज से देखते है कि ये कौनसे गीत है। इस यात्रा में बहुत सारे गीत और परंपराएं सामने आ रही है जो लुप्त प्रायः हो रही थी।
टीम की महिला साथी किशोरियों और महिलाओं के साथ अलग से बैठकर उनके स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य की बात भी करती है। इसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता , आशा और यदि एएनएम हो तो वे भी मदद करती है ताकि उन्हें मासिक चक्र आदि की सही जानकारी मिल सकें और वे स्वस्थ आदतों का विकास कर सकें। इसी दौरान गर्भवती और धात्री महिलाओं की देखभाल, पोषण और अस्पताल में डिलीवरी करवाने से लेकर टीकाकरण की वृहद जानकारी दी जाती है। सरकारी जननी प्रसव योजना और 108 की जानकारी दी जाती है। 
इससे गांव की स्थिति और शिशु मातृ मृत्यु दर का पता भी चलता है। आशा और एएनएम स्तनपान की जानकारी के साथ योग्य प्रकार से दूध पिलाने का तरीका भी सद्य प्रसूताओं को कहीं कहीं सिखाती है जो बहुत ही उपयोगी साबित हो रहा है। मां के पहले दूध यानी खीस (पीला गाढ़ा दूध) के महत्व को भी बताया जाता है ताकि बच्चे के स्वास्थ्य, सम्पूर्ण पोषण की सही जानकारी दी जाती है।

गांव की वैधानिक समितियों के साथ स्कूल, आंगनवाड़ी और गांव भ्रमण किया जाता है, उन्हें उनके अधिकार और शासकीय प्रावधानों के बारे में बताया जाता है। जिन गांवों में शौर्य दल गठित है वहां बाल संरक्षण, महिला मुद्दों की समझ बढ़ाने की बात की जाती है। यदि इस दौरान कोई मुद्दा हो तो उसे सरपंच और पंचायत के सदस्यों के साथ बांटा जाता है।
हो सकता है कि किसी को लगें यह सब अतिशयोक्ति है पर दस्तक टीम को विकास संवाद ने को गत दो वर्षों में प्रशिक्षण देकर दक्ष किया है और विभिन्न प्रकार के कौशल विकसित किए है उसका असर अब जमीनी स्तर पर देखने को मिल रहा है। कार्यकर्ता स्थानीय भाषा में लोगों के साथ जिस सहजता और सरलता से समझाते है और समुदाय सकारात्मक प्रतिक्रिया देता है वह बहुत ही सराहनीय और आश्चर्यजनक है। 
उमरिया में दस्तक यात्रा के दौरान चार दिनों में तीन गांवों में मैंने बहुत बारीकी से यह देखने समझने का प्रयास किया और यह पाया कि जो क्षमता वृद्धि के प्रयास हुए उसका दीर्घकालीन असर और जमीनी परिणाम अब दिखने लगे है। टीम में जोश है और यह लगता है कि इस बहाने जो साथियों की समझ बढ़ रही है सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक वह सच में एक बड़ा इशारा भी है और इस बात का सबूत भी कि बदलाव के लिए प्रयास समन्वित रूप से करना होते है और अपेक्षित परिणाम पाने के लिए बहुत धैर्य लगता है।
कल रात हमारे संतोष बाबू ने जीवन का जाल web of life खेल खिलाया और जंगल जल जमीन से मनुष्य के सह सम्बन्धों को स्थापित किया। यह खेल सबको बहुत पसंद आया। एक लंबी बैठक उसके बाद हुई जिसमें लगभग पूरा गांव इकठ्ठा था।
सरपंच और पंचायती राज के दर्द :-

Rekha Yadav 

डोगर गवां की है रेखा सिंह जो सरपंच है, बारहवी पास है। इनके घर से गत बीस वर्षों से पंचायत में सरपंच रही है। वे कहती है एक बार ससुर, दो बार सास और अब वे खुद सरपंच है। सरकार अब विकास के नाम पर सिर्फ शौचालय का काम करवाती है बाकी सब काम ठप्प है। आंगनवाड़ी रोज जाती है और देखती है स्कूल कम जा पाती है। कहती है काम नहीं होते, प्रस्ताव जनपदों में पड़े रहते है और जिले में तो कोई सुनवाई नहीं है। फिर भी अधिकारी सहयोग करते है पर ग्राम सभाओं में तो हमें लोग जमकर सुनते सुनाते है है। दस्तक की टीम गांव आती है , बहुत सारे सर्वे करती है बताती भी है हमें पर हम क्या कर सकते है।

दो कमरे में लगती हैं पांच कक्षाएं

( रीवा से पुष्पेन्द्र सिंह की रिपोर्ट) शासकीय प्राथमिक शाला सोहावल खुर्द, ग्राम करौंदहाई (पंचायत सोहावल खुर्द) में विद्द्यालय से ज...