Thursday, October 12, 2017

Blog : बिन लड़े कुछ भी नहीं मिलता यहां ये जानकर

उमरिया से संदीप नाईक
यात्रा कल सुबह ही डोगर गवां पहुंची थी। जिस गांव में टीम रात्रि विश्राम करती है तो कई प्रकार के काम करते है। भोर में यात्रा टीम गांव के बीच पहुंच जाती है फिर लोगों से बात करके गांव की सफाई करते है मुख्य मार्ग से गांव की गलियों की नाली और घूरे की इसमें शुरू में समुदाय थोड़ा हिचकिचाता है पर थोड़ी देर में सहज होकर अपने घर से झाडू के आते है और साथ में जुट जाते है।
 कई गांव में पंच सरपंच और शाला विकास समिति के सदस्य भी जुड़ जाते है। फिर पानी के स्रोत देखें जाते है और हैंडपंप के आसपास सोखता गड्ढा बनाना, छोटे नालों और नदी पर बोरी बंधान का काम भी करते है। यह सब करते करते ग्यारह बज जाते है। भोजन की तैयारी शुरू करते है, सामूहिक रूप से पौष्टिक भोजन बनाना सिखाया जाता है और सब लोग साथ भोजन करते है।
पौष्टिक भोजन कैसे पकाया जाएं इसका प्रशिक्षण अजमत और भूपेंद्र त्रिपाठी करते है। भोजन बनाने के बाद सब लोग साथ बैठते है, भोजन शुरू करने से पहले अजमत भोजन मंत्र पढ़वाते है सबको जिसके बोल है
"मेहनत कर मजदूर किसानों ने जो अन्न उगाया
उसी अन्न को मेहनत कर यह भोजन गया पकाया
भोजन से पहले श्रम के प्रति हम सम्मान जताएं
कोई भूखा नहीं रहे यह सोच प्रेम से खाएं
आज का भोजन सबसे अच्छा"
यह मंत्र पढ़कर सब भोजन शुरू करते है। बच्चे महिलाएं और बड़े बुजुर्ग एक साथ बगैर किसी भेद भाव के भोजन कर फिर चर्चा में बैठते है। गांव की समस्या, दिक्कतें, अच्छाईयां और क्या मिलकर किया जा सकता है।
दोपहर तक लोगों के साथ अच्छी बात हो जाती है इसके बाद स्कूल और आंगनवाड़ी में टीम गांव के युवा किशोर किशोरियों के साथ पहुंचती है और बच्चो के साथ खेल कूद कर बातचीत होती है। बच्चे जाने के बाद सब लोग मिलकर आंगनवाड़ी और स्कूल की सफाई करते है। लग्गी, चित्र, पोस्टर, ऑरिगेमी के आइटम और बच्चों के बनाए खिलौनों से केंद्र को आकर्षक बनाया जाता है।
शाम को पूरी टीम कुछ आत्म विश्लेषण करती है आज के दिन की गतिविधियों केे साथ-साथ गांव की समस्याओं पर बातचीत होती है और संभावित एक्शन पर बात होती है। फेसबुक और व्हाट्स एप पर छोटी रपट और सूचनाएं बाकी जिलों के साथियों के साझा की जाती है। एक रजिस्टर में दिनभर की बातचीत और विश्लेषण को दर्ज किया जाता है। प्रशासन को अवगत कराया जाता है और कोशिश की जाती है कि समस्याओं पर ठोस पहल हो।
रात में गांव के सार्वजनिक स्थान पर जैसे चबूतरे ,नीम के पेड़ के नीचे या पंचायत भवन पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है जहां हर कोई बगैर डर और संकोच के आ सकें और भागीदारी कर सकें। इस कार्यक्रम में गांव के परंपरागत गीत, संस्कृति और नृत्य के आयोजन हो रहे है। बड़े बुजुर्ग लोग भी अपने जमाने को याद करके झूमने लगते है और युवा किशोर अचरज से देखते है कि ये कौनसे गीत है। इस यात्रा में बहुत सारे गीत और परंपराएं सामने आ रही है जो लुप्त प्रायः हो रही थी।
टीम की महिला साथी किशोरियों और महिलाओं के साथ अलग से बैठकर उनके स्वास्थ्य और प्रजनन स्वास्थ्य की बात भी करती है। इसमें आंगनवाड़ी कार्यकर्ता , आशा और यदि एएनएम हो तो वे भी मदद करती है ताकि उन्हें मासिक चक्र आदि की सही जानकारी मिल सकें और वे स्वस्थ आदतों का विकास कर सकें। इसी दौरान गर्भवती और धात्री महिलाओं की देखभाल, पोषण और अस्पताल में डिलीवरी करवाने से लेकर टीकाकरण की वृहद जानकारी दी जाती है। सरकारी जननी प्रसव योजना और 108 की जानकारी दी जाती है। 
इससे गांव की स्थिति और शिशु मातृ मृत्यु दर का पता भी चलता है। आशा और एएनएम स्तनपान की जानकारी के साथ योग्य प्रकार से दूध पिलाने का तरीका भी सद्य प्रसूताओं को कहीं कहीं सिखाती है जो बहुत ही उपयोगी साबित हो रहा है। मां के पहले दूध यानी खीस (पीला गाढ़ा दूध) के महत्व को भी बताया जाता है ताकि बच्चे के स्वास्थ्य, सम्पूर्ण पोषण की सही जानकारी दी जाती है।

गांव की वैधानिक समितियों के साथ स्कूल, आंगनवाड़ी और गांव भ्रमण किया जाता है, उन्हें उनके अधिकार और शासकीय प्रावधानों के बारे में बताया जाता है। जिन गांवों में शौर्य दल गठित है वहां बाल संरक्षण, महिला मुद्दों की समझ बढ़ाने की बात की जाती है। यदि इस दौरान कोई मुद्दा हो तो उसे सरपंच और पंचायत के सदस्यों के साथ बांटा जाता है।
हो सकता है कि किसी को लगें यह सब अतिशयोक्ति है पर दस्तक टीम को विकास संवाद ने को गत दो वर्षों में प्रशिक्षण देकर दक्ष किया है और विभिन्न प्रकार के कौशल विकसित किए है उसका असर अब जमीनी स्तर पर देखने को मिल रहा है। कार्यकर्ता स्थानीय भाषा में लोगों के साथ जिस सहजता और सरलता से समझाते है और समुदाय सकारात्मक प्रतिक्रिया देता है वह बहुत ही सराहनीय और आश्चर्यजनक है। 
उमरिया में दस्तक यात्रा के दौरान चार दिनों में तीन गांवों में मैंने बहुत बारीकी से यह देखने समझने का प्रयास किया और यह पाया कि जो क्षमता वृद्धि के प्रयास हुए उसका दीर्घकालीन असर और जमीनी परिणाम अब दिखने लगे है। टीम में जोश है और यह लगता है कि इस बहाने जो साथियों की समझ बढ़ रही है सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक वह सच में एक बड़ा इशारा भी है और इस बात का सबूत भी कि बदलाव के लिए प्रयास समन्वित रूप से करना होते है और अपेक्षित परिणाम पाने के लिए बहुत धैर्य लगता है।
कल रात हमारे संतोष बाबू ने जीवन का जाल web of life खेल खिलाया और जंगल जल जमीन से मनुष्य के सह सम्बन्धों को स्थापित किया। यह खेल सबको बहुत पसंद आया। एक लंबी बैठक उसके बाद हुई जिसमें लगभग पूरा गांव इकठ्ठा था।
सरपंच और पंचायती राज के दर्द :-

Rekha Yadav 

डोगर गवां की है रेखा सिंह जो सरपंच है, बारहवी पास है। इनके घर से गत बीस वर्षों से पंचायत में सरपंच रही है। वे कहती है एक बार ससुर, दो बार सास और अब वे खुद सरपंच है। सरकार अब विकास के नाम पर सिर्फ शौचालय का काम करवाती है बाकी सब काम ठप्प है। आंगनवाड़ी रोज जाती है और देखती है स्कूल कम जा पाती है। कहती है काम नहीं होते, प्रस्ताव जनपदों में पड़े रहते है और जिले में तो कोई सुनवाई नहीं है। फिर भी अधिकारी सहयोग करते है पर ग्राम सभाओं में तो हमें लोग जमकर सुनते सुनाते है है। दस्तक की टीम गांव आती है , बहुत सारे सर्वे करती है बताती भी है हमें पर हम क्या कर सकते है।

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