Friday, October 13, 2017

BLOG: गांव का नाम मगरधरा ही क्यूँ पड़ा ?



Santosh Vaishnav

संतोष वैष्णव विकास संवाद के साथी हैं। उनकी भूमिका अकाउंट्स देखने की है। दस्तक यात्रा के दौरान अपनी रुचि से वह फील्ड में उमरिया पहुंचे और पूरे दो दिन का वक्त बिताया। उमरिया से लौटकर इस ब्लॉग पर वह अपने अनुभव साझा कर रहे हैं। 
-


वैसे तो वर्तमान में कहीं भी जीवन जीना इतना आसान नहीं है लेकिन शहरों की अपेक्षा गांवों में जीवन जीने के मायने बिल्कुल विपरीत होते हैं. इसका अनुभव उमरिया जिले में फील्ड में जाने के बाद हुआ. 
  
दस्तक परियोजना और दस्तक यात्रा के अंतर्गत उमरिया जाने का मौका मिला. ११ अक्टूबर को उमरिया पहुँचने पर पहले दिन मगरधरा गाँव पहुंचे, जो की अमडी पंचायत के करकेली ब्लाक में आता है. सभी साथी दोपहर के भोजन की तैयारी में जुटे थे. गांव के लोगों ने पारंपरिक ढंग से टीका लगाकर फूलों के गुलदस्ते देकर स्वागत किया. भोजन में समय था तो संदीप भाई और  गांव के लोगों के साथ चर्चा होने लगी. 
 
गांव का नाम मगरधरा ही क्यूँ पड़ा ? संदीप भाई ने पुछा.  इस पर गांव के एक दादा बताते है कि बड़े बुजुर्गों के मुँह से सुना है साहब, गांव के पास एक नदी हुआ करती थी जिसमें एक मगर रहता था, कोई भी उस नदी में जाता तो मगर उसे धर लेता था, इसलिए इस गांव का नाम मगरधरा हुआ लेकिन धीरे धीरे यह मगरघरा हो गया है. 

गांव के एक युवा साथी संतोष ने अन्य लोगों के साथ गांव में पैदा होने वाले अनाज, सब्जी और फलों के बारे में बताया. साथ ही जिस चीज का उत्पादन बिलकुल खत्‍म हो चुका है उसके बारे में जानकारी दी. 

पहली बार कोदो, कुटकी, मुनगा भाजी, चचीणा, वन भाजी, पौ भाजी जैसी  सब्जीयों और अनाजों के बारे में जाना और उनके नाम सुने और स्वाद भी चखा. शायद कुछ चीजों को हम दूसरे नाम से भी जानते हैं. 

सुजीत सिंह जो कि गांव में रहने वाले युवा साथी है, 12 वीं कक्षा पास करके उमरिया में डीसीए की पढ़ाई कर रहे हैं. उन्हें रोजाना साइकिल से जाना होता है जो कि लगभग 10 से 12 किलोमीटर दूर है. 

कालेज के बारे में पूछने पर सुजीत बताते हैं कि कम प्रतिशत आने के कारण कालेज में दाखिला नहीं मिल पाया इसलिए कंप्यूटर सीखने का मन बना लिया. आगे पढ़ाई जारी रखूँगा. पढ़ने का जोश जज्‍बा सुजीत में साफ झलक रहा था जो अपने आप में गांव के बच्चों के लिए लाभकारी है. स्वादिष्ट भोजन करने के उपरांत अगले दिन कि तैयारी के लिए उमरिया पुनः लौट आये 

            
अगले दिन ग्राम डोंगरगवां पहुंचे जो करकेली ब्लाक के कोहका पंचायत में आता है. जहाँ सबसे पहले गांव के स्कूल में मास्टर साहब से मुलाकात हुई. मास्टर साहब थोड़े घबराए से लग रहे थे. डोंगरगवां में 1 से 5 कक्षा तक स्कूल है, आज 51 बच्चों की उपस्थिति थी और वो सब लोग पढ़ाई कर रहे थे.

हमें देखकर अजीब सी नजरों से निहारने लगे, कई सवाल उनकी नज़रों में थे. उनसे बातचीत करने पर बच्चों के मन में डर साफ झलक रहा था. परन्तु बच्चों के साथ बच्चा बनने पर वह डर थोड़ी देर में खत्म हो गया और बच्चे हमारे साथ सहजता से घुल मिल गए. उन्हें एक खेल खिलाया गया पहचानो कौन ? 

हमारे पास बहुत सारे कार्ड्स थे जिसमें बंदर, शेर, भालू , मछली, सांप, इत्यादि के चित्र थे. खेल-खेल में बच्चों ने जानवरों के नाम, गिनती, पहाड़े, एबीसीडी आसानी से बताना शुरू किया,  कुछ को नहीं आया और कुछ बच्चे बड़ी होशियारी के साथ जवाब दे रहे थे. सभी बच्चों को खो-खो और कबडडी खिलाने के बाद टाफियां बांटी. 

उसके बाद हम सभी आँगनबाड़ी पहुंचे. जहाँ दस्तक टीम के सभी साथी आंगनवाडी को कागज के बनाये गए चित्रों से सजा रहे थे. उनके साथ गांव की किशोरियां भी मौजूद थी, जो उनके काम में हाथ बटा रही थी और चित्र बना रही थी. 

वहाँ पर आंगनवाडी कार्यकर्ता और आशा भी मौजूद थी. संदीप दादा ने आंगनवाडी में बच्चों को मिलने वाले भोजन के बारे में पूछा. गांव में वर्तमान में गर्भवती एवं धात्री महिलाओं की संख्या की जानकारी ली. गर्भावस्था  के दौरान किस तरह से अस्पताल पहुंचा जाता है, बच्चा पैदा होने पर अस्पताल में किसी से पैसों की मांग की जाती है इत्यादि सवाल जवाब के साथ चर्चा को विराम दिया 
 
शाम ढलने को थी गांव के युवा साथी इकट्ठा हुए जहाँ सभी को एक खेल खिलाया गया जिसका नाम वेब ऑफ लाइफ (जीवन का मकड जाल) है. कुछ कार्ड्स जिसमें मिट्टी, नदियाँ, बादल, पेड़, जानवर, मछली, बीज, पानी, इत्यादि के चित्र बने थे सभी को एक एक चित्र दिया गया. 

इस खेल में हम एक दूसरे पर किस तरह से निर्भर हैं बताया गया और एक रस्सी के सहारे अपने आप एक जाल बनता चला गया. मिट्टी / भूमि से बादल, बादल से बारिश, बारिश से नदियाँ कुएं तालाब और उपजाऊ जमीन होगी, जमीन से अनाज, फल, सब्जियां इत्यादि का उत्पादन होगा जो हमारे जीवन में महत्व्पूर्ण हैं जिनके बिना हमारा जीवन शून्य है. 

एक भी चीज़ हमसे अलग होती है तो उसका प्रभाव हमारे जीवन को कितना नुकसान देता है इस खेल से युवा साथियों ने जाना. संदीप दादा ने जंगल को काटने से होने वाले नुकसान के बारे में बताया. 


No comments:

Post a Comment

दो कमरे में लगती हैं पांच कक्षाएं

( रीवा से पुष्पेन्द्र सिंह की रिपोर्ट) शासकीय प्राथमिक शाला सोहावल खुर्द, ग्राम करौंदहाई (पंचायत सोहावल खुर्द) में विद्द्यालय से ज...